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Saturday, April 3, 2010

काल सर्प दोष के प्रत्यक्ष प्रभाव

काल सर्प दोष से पीड़ित जातक को निम्नलिखित परेशानियों से जूझना पड़ता है।
१। आजीविका प्राप्ति में बाधा
२। वैवाहिक जीवन में कलह
३। धन प्राप्ति में बाधा
४। मानसिक तनाव व अशांति
५। काल सर्प योग के कुंडली में अगर रहू या केतु का शनि, मंगल या सूर्य से कोई योग बनता है तो जातक का जीवन संघर्षो से भरा रहता है।

अधिक अनिष्टकारी समय

काल सर्प दोष का अधिक कुप्रभाव प्रायः निम्न अवधियो में होता है।
१। रहू के अंतर तथा प्रत्यंतर दशा में
२। शनि के अन्तर दशा में
३। सूर्य के अन्तर दशा में।
४। मंगल के अन्तर दशा में
५। शनी के साढ़े शाती में
६। जीवन के मध्यायु में
७। गोचर कुंडली में जब जब काल सर्प योग बनता है तब तब कुप्रभाव बढ़ जाता है।

Saturday, March 27, 2010

काल सर्प दोष के लक्षण


काल सर्प योग में जन्मे जातक में प्रायः निम्नलिखित लक्षण पाए जाते है।
१। उन्हें बुरे सपने आते है जिसमे अक्सर साँप दिखाई देता है।
२। सपने में वह खुद को या दूसरे को साप को मारते हुए देखता है।
३। सपने में उसे नदी, तालाब,कुए,और समुद्र का पानी दिखाई देता है।
४। सपने में उसे मकान अथवा पेरो से फल आदि गिरते दिखाई देता है।
५. सपने में वह खुद को पानी में गिरते एवं उससे बाहर निकलने का प्रयास करते करते हुए देखता है।
६। वह खुद को अन्य लोगो से झगड़ते हुए देखता है।
७। सपने उसे विधवा स्त्रीयां दिखाई पड़ती है।
८. नींद में शरीर पर साप रेंगता महसूस होता है।
९। यदि वह संतानहीन हो तो उसे किसी स्त्री के गोद में मृत बालक दिखाई देता है।
१०। काल सर्प दोष पूर्व जनम के पापो को भी दर्शाता है।

Sunday, March 21, 2010

काल सर्प दोष क्या है



काल सर्प योग का निर्माण ग्रहों की एक विशेष स्थिति के फल स्वरूप होती है
यह स्थिति है , राहू और केतु के बीच एक ओर अन्य सभी सात ग्रहों का आ जाना। जन साधारण में यह एक धारण व्याप्त है की यह एक परम अनिष्टकारी योग है, परन्तु यह एक मात्र भ्रम ही है। इनके बुरे प्रभाव तो होते है , परन्तु इतने भी बुरे नहीं की परम अनिष्टकारी हो। मुख्यतः काल सर्प दोष के कारण जातक को शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है।
कुंडली में काल सर्प दोष होने से जातक की अपेक्षित प्रगति में अर्चने आती है। ऐसा जातक शारीरिक , आर्थिक एवं
मानसिक द्रष्टि से परेशान होता है। यदि बीमार हो तो दवा असर नहीं करती है , कर्ज हो तो जल्दी चुकता नहीं और कलह हो तो शांति प्रदान नहीं होती आदि।
काल सर्प योग का निर्माण:-
जब कुंडली में सभी ग्रह राहू और केतु के बीच आ जाते है तो इस ग्रह स्थिति को काल सर्प योग कहते है।राहू को सर्प का मुख और केतु को उसकी पूछ कहते है। यदि अन्य ग्रह योग बलवान न हो तो जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।
कई बार ऐसा होता होता है की राहू और केतु के मध्य सभी सात ग्रह न आकर एक या एक से अधिक ग्रह बाहर रहते है। ऐसी अवस्था में भी काल सर्प योग की छाया बरकरार रहती है । इसलिए इसे आंशिक काल सर्प योग कहते है।
राहू और केतु हमेशा वक्रीय रहते है, अतः कुंडली में इनकी दिशा घरी की चाल की दिशा में चलती है। परन्तु अन्य ग्रह सामान्यतः घरी की चाल के विपरीत दिशा में गति करते है। अतः अगर समस्त ग्रह , राहू यानि की सर्प के मुख में जाता हुआ प्रतीत हो तो इसे वास्तवीक काल सर्प योग कहते है। इसके विपरीत यदि समस्त ग्रह केतु यानि सर्प के पूछ की ओर जाता प्रतीत हो तो इसे विपरीत काल सर्प योग कहते है।
वास्तवीक योग का प्रभाव अधिक जबकि विपरित योग का अपेक्षाकृत कम होता है।
काल सर्प योग के जातक को राहू, केतु के दशा- अंतरदशा एवं गोचर के दौरान भावो से सम्बंधित कष्ट ज्यादा होता है।

यदि किसी कुंडली में राहू या केतु के साथ अन्य ग्रहों की युति है , तो उन ग्रहों की डिग्री देखि जनि चाहिए। यदि साथ में बैठे ग्रह की डिग्री राहू व् केतु के डिग्री से ज्यादा है तो यह पूर्ण काल सर्प योग नहीं माना जायेगा। यदि राहू और केतु के घेरे से बाहर एक भी ग्रह हो, तो भी यह पूर्ण काल सर्प योग नहीं माना जायेगा।

From Astronomy to astrology.....



This article will help u understand the concept of positioning of planets in signs......

Astronomy- the study of heavenly bodies in the solar system & Astrology- the study of the effect of those heavenly bodies i.e., planets on the human beings on Earth.
As we know in our solar system all the nine planets revolve around the Sun(center of the solar system) ,but since man lives on the earth & in astrology we study effect of planets on human beings,we study the motion of planets with respect to Earth i.e., we take earth in center and measure position of bodies around it,including Sun,Moon and other planets. Likewise,as Earth revolves around the Sun in one year ,so in astrology we consider Sun revolves Earth in one year.
The imaginary path(line) along which the Sun moves is called ECLIPTIC.The broad band or belt extending 9 degree on either side of the ecliptic is known as ZODIAC.
This zodiac is divided into 12 equal parts of 30 degree each (making a total of 360 degrees). Each part is named as a sign like:- Aries,Taurus,Gemini,Cancer,Leo,Virgo,Libra,Scorpio,Sagittarius,Capricorn,Aquarius & Pisces.

Now to locate the position of planets from the Earth we use these signs.

now see from the figure:
The location of the planet is calculated by drawing a line from centre of Earth to the planet and the point at which this line cuts the Zodiac is said to be the position of the planet.
For example :if the line from the centre of the Earth cuts the zodiac at the point 100 degree 24' 20" which means
100 = (3x 30) + 10
thus,100 degree means 3 signs(that have passed) and 10 degree i.e.,100 degree=3 sign 10 degree
so we can altogether say that planet is in 4th sign at 10 degree 24 minute and 20 second..
so location of the planet is

3s1024’20”



similarly for other planets we can find out their respective position w.r.t the Earth

Friday, March 12, 2010

बालारिष्ट


बालारिष्ट का आर्थ है ,बालक की बारह वर्ष की आयु के पूर्व मृत्यु ,या मृत्यु तुल्य कष्ट। यह कष्ट किसी बीमारी , बालक के माता या पिता की मृत्यु के कारण हो सकता है । बालारिष्ट के मुख्या सिद्धांत -
-चन्द्रमा की स्थिति - बाल्यावस्था में चन्द्रमा की सिथिति सर्वाधिक महत्व पूर्ण होती है । चन्द्रमा का पीड़ित होना बालक और माँ दोनों को के लिए आरिष्ट उत्पन्न करता है । यदि जन्म कुंडली में चन्द्रमा क्रूर गृह के साथ या क्रूर दृष्टि युक्त हो तथा आठवे या बारहवे भाव में बैठा हो तो बालक अल्पायु होता है ।
-लग्न तथा लग्न का स्वामी -किसी भी कुंडली में लग्न तथा लग्नेश का महत्त्व अति महतवपूर्ण है ।लग्न तथा लग्न स्वामी की अच्छी स्थिति किसी भी विपत्ति से सामना करने की शक्ति देता है. यदि लग्न पाप ग्रहों के बीच हो और लग्न से छठे , आठवे और बारहवे भाव में पाप गृह हो तो बालक अल्पायु होता है।

यदि लग्न से आठवे भाव में मंगल ,नवे में सूर्य तथा बारहवे में शनि हो एवं उनपर किसी भी शुभ गृह की दृष्टि न हो तो बालक अल्पायु होता है।
३- अष्टम भाव तथा अष्टां स्वामी- अष्टम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि अथवा उसके प्रभाव से आयु क्षीण होती है।
परन्तु अष्टम भाव में स्थित मार्गीय शनि आयु में वृद्धि करता है।

४- यदि वक्रीय शनि मंगल की राशी में हो , अष्टम भाव में स्थित हो और उस पर बलि मंगल की दृष्टि हो , तो अल्पायु योग बनता है।
५- यदि जन्म सूर्य या चन्द्र ग्रहण के समय हुआ हो , जब सूर्य तथा चन्द्र राहू या केतु के समीप हो और लग्न पर शनि तथा मंगल की दृष्टि हो तो अल्पायु योग बनता है।
६- माता को अरिष्ट- चन्द्रमा पर तीन अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो और उस पर और किसी भी शुभ गृह की दृष्टि न हो तो माता को मृत्यु तुल्य कष्ट अथवा उसकी मृत्यु हो सकती है।
७- पिता को अरिष्ट- यदि सूर्य पाप कर्त्री योग में हो अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त हो और अशुभ गृह सूर्य से सप्तम भाव में हो तो पिता की मृत्यु अथवा उसे मृत्युतुल्य कष्ट हो सकता है.

Wednesday, November 25, 2009

ज्योतिष एक विज्ञानं


ज्योतिष एक विज्ञान
जिस शास्त्र [विज्ञान ] के पास पृथ्वी की उत्पत्ति का भी डाटा मौजूद है ,उसे यूँ ही अंधविस्वास नही कहकर नाकारा जा सकता है । आज का आधुनिक विज्ञान भी ,अपनी नवीनतम तकनीको से पृथ्वी की उम्र [लगभग २ अरब वर्ष ] की व्ही पुष्टि कर रहे है ,जो की ज्योतिष विज्ञान बताता है ।
इस तथ्य को जान लेने के बाद हम विचार करते है की किन कारणों से ज्योतिष विज्ञान को अंध विश्वास की श्रेणी में रखा जाने लगा । तो सब से पहले ज्योतिष का अध् कचरा ज्ञान रखने वाले महानुभाव लोग नजर आते है । जो की ज्योतिष को अपने फायदे के लिए एक जादूगरी या बाजीगरी की तरह पेश करते है।
जबकि ज्योतिष एक विशुध्तम विज्ञान है , और इस के द्वारा तभी किसी को कुछ लाभ पहुचाया जासकता है जबकि ज्योतिर्विद जातक से ठीक एक मनोवैज्ञानिक की तरह बात करे । तब ही वह सही समस्या तक पहुच पायेगा । अन्यथा कोई भी परिणाम नही निकलेगा । सिर्फ़ धोके धड़ी का व्यपार बढ़ेगा । अब अन्य कारण, जो ज्योतिष विज्ञान को हानि पहुँचा रहे है , उन पर भी गौर करते है ।
जैसे ,किसी भी विज्ञान में उसकी एक अपनी तकनिकी भाषा होती है ,जिसका भाव व अर्थ तो समझा जा सकता है ,किंतु उसका अन्य भाषा में वैसा ही भावार्थ के साथ अनुवाद हो सके ,ऐसा जरुरी नही है । उदाहरण में , अंग्रेजी भाषा का प्लानेट शब्द संस्कृत के ग्रह शब्द के अर्थो के करीब होते हुए भी पूरी तरह से समानार्थक नही है ।
प्लेनेट शब्द का अर्थ सूर्य के इर्दगिर्द घुमने वाले विशेष आकर प्रकार व गुन लिए हुए आकाशीय पिंडो से है ,जबकि ग्रह शब्द का अर्थ ज्योतिष में उन आकाशीय तत्वों से है जिनका प्रभाव प्रथ्वी पर पड़ता है । अतः ग्रह की इस परिभाषा के अंतर्गत सूर्य भी ग्रह है ,चद्रमा भी ग्रह है व रहू केतु काटन बिन्दु भी ग्रह है । क्योंकि इन सब का प्रभाव हमारे ऊपर अर्थात पृथ्वी पर पड़ता है ।चन्द्रमा के कारण समंदर के ज्वार भंते को कोई नकार नही सकता । सूर्य के प्रभव से होते दिन रात बदलते मौसम को कोई भी नकार नही सकता । इसी प्रकार ज्योतिष की परिभाष के अन्तरगत आने वाले ग्रह कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य दिखलाते है । जबकि प्लानेट का असर हो जरुरी नहीं।
इस तथ्य से स्पष्ट है की भाषाई भ्रम भी ज्योतिष को हनी पंहुचा रहा है ।
कई बार लोग कहते है की ज्योतिषी ने भिविष्यवानीकरी थी सब ग़लत साबित हुई है। ये सब बकवास है । ये कोई विज्ञानं नहीं है ।
इसके उत्तर में मेरा एक प्रश्न है, मौसम विभाग कितनी ही बार मौसम की भिविष्यवानी करता है जो की ग़लत साबित होती है ,फिर भी मौसम विभाग का विज्ञानं विज्ञानं ही है ,क्यो ?
कई बार डॉक्टर साहब मरीज के लक्चन देखकर ग़लत बीमारी का अंदाजा लगा लेते है । जबकि मरीज को कोई और बीमारी होती है ,तब भी आधुनिक चिकित्सा विज्ञानं विज्ञानं ही है , क्यो ?
जवाब यही है की जिस तरह मौसम विभाग या डॉक्टर विश्लेषण करने में गलती कर सकते है,उसी प्रकार एक ज्योतिर्विद भी गलती कर सकता है .या आप ऐसे ज्योतिषी के पास गए हो जिसे ठीक से ज्योतिष का ज्ञान ही न हो ।
अतः सिर्फ़ इतनी सी बात के लिए ज्योतिष अन्धविश्वास हो जाए ,विज्ञानं न रह जाए ,ऐसा नहीं होसकता ।
दूसरे एक तथ्य यह भी हैं की किसी भी विज्ञानं में समय के साथ नई खोज होती रहती है और नियम बनते बिगड़ते रहते है । चूँकि ज्योतिष भी विज्ञानं है अतः यह भी वाद अपवाद से अछूता नहीं है।

जिसप्रकार आधुनिक चिकित्षा विज्ञानं इतनी तरक्की करलेने के बाद भी ,मनुष्य के पेट में उपस्थित तिल्ली का क्या उपयोग है ,यह नही जान पाया है ,उसीप्रकार ज्योतिष के सामने अभी भी अनसुलझे प्रश्न बाकी है ।
मेरे इस तथ्य को उजागर करने का तातपर्य यही है की ,कोई भी विज्ञानं कितनी भी तरक्की करले ,उसके सामने कुछ न कुछ अनसुलझे रहस्य रहते ही है । और यही रहस्य किसी भी विज्ञानं की तरक्की का कारण बनते है ।

Friday, November 6, 2009

प्रवेश प्रारम्भ

वैदिक ज्योतिष परिषद् ,द्वारा ज्योतिष ,हस्तरेखा वास्तु एवं योग विज्ञान के डिप्लोमा कोर्स आरम्भ कर रहा है ।
विशेषता -

१-ग्रहों का ज्योतिषीय विश्लेषण के साथ साथ योग विद्या द्वारा उनका उपचार पद्धति ।
२-
आपके द्वारा लिखे हुए लेख आदि को समाचार पत्रों व माग्जीनो आदि में प्रकाशित कराने की सुविध ,जिससे विद्यार्थी समाज में ज्योतिष के रूप में इस्थापित होसके ।
-समय समय पर आयोजित सम्मलेन व नि शुल्क परामर्श शिविरों में विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक ज्योतिष की शिक्छा दी जायेगी ।